आज हमने उस बूढ़े आदमी को देखा जिसने दस दिन से कुछ खाया नहीं है. क्या कर सकते थे हम भी. बहुत दुखी हो गए, बहुत मनाया उसे पर वो था की मानाने को ही तैयार नहीं था, लाख समझाया पर वो तो न जाने क्या देश देश की रट लगाये हुए था .
अरे रिश्वतखोरी की शिक्षा तो हमें हमारे एजुकेशन सिस्टम से ही दी जाने लगी थी अब तो खून में समां गया है भ्रष्टाचार. इतनी जल्दी कैसे मिटाएँगे. पर वो है की मनाता ही नहीं. हमने साम, दाम, दंड, भेद सब अपना कर देख लिया.
अब तो एक ही चारा बचा है, हम सारे लोग मिलकर एक एक के सिक्के इकठ्ठा करते हैं. सारे पैसे ले जा के सिब्बल को दे देते है शायद उनका पेट भर जाए तो वो संसद में लोकपाल पास करवा दे. अब किसी को बुरा लगे तो लगे पर हमे तो अपना काम करवाने का यही रास्ता आता है. रिश्वत दो काम करवाओ.
यदि भ्रष्टाचार मिटाना है तो दिल और दिमाग से मिटाओ .